जानिए क्या होता है पिशाच या शापित योग, कौन से भाव में होता है शुभ
वैदिक ज्योतिष में शनि और राहु को पापी ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है। दोनों ग्रह एक-दूसरे के मित्र हैं लेकिन वैदिक ज्योतिष में दोनों की युति अच्छी नहीं मानी जाती है। जब ये दोनों ग्रह आपस में संबंध बनाते हैं तो पिचाश योग बनता है। अब सवाल यह उठता है कि जब दोनों ग्रह एक-दूसरे से मित्रता करते हैं तो उनके संयोग से शापित योग क्यों बनता है। इसके लिए शनि और राहु को समझना होगा। दोनों ग्रह सबसे पापी ग्रह हैं, दोनों ही रात्रिबली होते हैं। शनि का रंग काला है। शनि अंधकार का ग्रह है। राहु एक भ्रम यानी जादू है। इसलिए अमावस्या के आसपास लोग जादू या तंत्र करते हैं। जब भी शनि और राहु के बीच संबंध होता है तो नकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। जिसे ज्योतिष शास्त्र में पिचाश कहा गया है। हालांकि ये योग सभी भाव में खराब नहीं होता है। ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि जहां पर ये योग बन रहा है वहां पर राशि कौन सी है। अगर ये योग शनि की राशियों में या फिर राहु की राशियों में बन रहा तो कोई परेशानी ज्यादा नहीं होगी।
इस स्थिति में बनता है कुंडली में शापित योग।
शनि और राहु एक साथ युति हैं और किसी भी घर में स्थित हैं।
एक दूसरे को परस्पर देखें।
शनि पर राहु या राहु पर शनि की दृष्टि होती है।
गोचर जब शनि जन्म के राहु से या राहु जन्म के शनि पर गोचर करता है। इन चार प्रकार के शनि और राहु के बीच संबंध होने पर पिशाच योग बनता है।
कुंडली के 12 भावों में पिचाश योग
लग्न यानी पहले भाव में
लग्न में शनि और राहु की युति हो तो ऐसे जातक पर तांत्रिक कार्यों का प्रभाव अधिक होता है। व्यक्ति हमेशा चिंतित रहता है। नकारात्मक विचार आते हैं। कोई न कोई बीमारी स्थिर रहती है। काम समय पर नहीं होता, काम बिगड़ जाता है।
दूसरे भाव में
यदि शनि और राहु दूसरे भाव में युति में हों तो व्यक्ति के परिवार के सदस्य उसके शत्रु बने रहते हैं। हर कार्य में रुकावटों का सामना करना पड़ता है। खान-पान की बुरी आदतों का शिकार होना, व्यसनों में पैतृक संपत्ति का नाश। शराब और नशे का प्रभाव रहता है।
तीसरे भाव में
जब शनि और राहु की युति तीसरे भाव में होती है तो व्यक्ति पराक्रमी होता है लेकिन अनावश्यक श्रम करना पड़ता है और छोटे भाई के साथ अनावश्यक मतभेद होता है।
चौथे भाव में
जब शनि और राहु चतुर्थ भाव में युति हो तो माता का पूर्ण सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। आर्थिक नुकसान होता है और मन विचलित रहता है। हृदय रोग होने की संभावना है।
पंचम भाव में
पंचम भाव में युति हो तो ऐसे लोगों की शिक्षा कठिन परिस्थिति में पूरी होती है। संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है।
छठे भाव में
छठे भाव में युति हो तो ऐसे जातक के शत्रु अधिक होते हैं। पुरानी बीमारी होने की संभावना है। हालांकि दुश्मनों को हराने की बहुत ताकत होती है और दुश्मन कुछ नहीं कर सकते हैं। मामा या माता के मायके पक्ष के लोग ही जीवन में रूकावट डालते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं।
सप्तम भाव में
सप्तम भाव में युति हो तो व्यक्ति को मित्रों और साझेदारों से धोखा मिलता है। दाम्पत्य सुख में बाधा आती है। हालांकि इस भाव में शनि उच्च के होते हैं। इन दोनों ग्रहों के कारण कंफ्यूजन रहता है पर शादी में स्टेबिल्टी रहती है।
अष्टम भाव में
अष्टम भाव में युति हो तो दुर्घटना की स्थिति बनती है, जीवन में संघर्ष की स्थिति बनती है। हालांकि तंत्र साधना में जातक लिप्त रहता है।
नवम भाव में
यदि नवम भाव में युति हो तो ऐसे जातक के भाग्य में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। पिता की खुशी में कमी आ जाती है।
दशम भाव में
यदि दशम भाव में युति हो तो व्यापार में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। करियर में सफलता मिलने में समय लगता है। लेकिन देर में सफलता मिलती है और जातक को मान सम्मान जरूर मिलता है।
ग्यारहवें भाव में
ग्यारहवें भाव में युति हो तो जुए और सट्टे के माध्यम से धन की प्राप्ति होती है। इस भाव में जातक नीच किस्म के लोगों के साथ रहता है और शराब खाने और वेश्यालयों से संबंध बनता है।
बारहवें भाव में
यदि 12वें भाव में युति हो तो व्यक्ति के अनैतिक संबंध बनाने की संभावना अधिक होती है। कारागार योग बनता है और गलत कार्यों पर खर्च होता है। हालांकि भाव में पिचाश योग बनने के कारण जातक का विदेश या विदेश वस्तुओं से संबंध होता है।
वैदिक ज्योतिष में शनि राहु की युति बहुत ही नकारात्मक प्रभाव वाली मानी जाती है, इसका मुख्य कारण यह है कि यदि कुंडली में किसी भी भाव में यह युति हो जाए तो दीर्घकालिक और असाध्य रोग होने की संभावना प्रबल हो जाती है।
जन्म कुंडली विश्लेषण और व्यक्तिगत समस्याओं के लिए संपर्क करें-
harisht1979@gmail.com