ज्ञान की देवी सरस्वती जी की यूं करें पूजा, 14 फरवरी को है बसंत पंचमी
इस महीने की 14 तारीख को बसंत पंचमी का त्योहार है। बसंत पंचमी हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध त्योहार है, जो माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार हर साल बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। बसंत पंचमी में ‘बसंत’ शब्द का अर्थ है वसंत और ‘ ‘पंचमी’ का अर्थ है पांचवां दिन। इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा करने की परंपरा है। बसंत पंचमी भारत में वसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है और इस दिन महिलाएं पीले कपड़े पहनती हैं।
वसंत पंचमी – 14 फरवरी 2024
वसंत पंचमी सरस्वती पूजा मुहूर्त – सुबह 07:00 बजे से लेकर दोपहर 12:41 तक
अवधि – 05 घण्टे 41 मिनट्स
वसंत पंचमी मध्याह्न – दोपहर 12:41
पंचमी तिथि प्रारम्भ – फरवरी 13, 2024 को दोपहल 02:41 बजे
पंचमी तिथि समाप्त – फरवरी 14, 2024
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, बसंत पंचमी माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन मनाई जाती है, जो हर साल जनवरी के अंत या फरवरी महीने की शुरुआत में आती है। इसके अलावा वसंत पंचमी का दिन पूर्वाहन काल की व्यापकता, सामान्य दृष्टि से सूर्योदय से मध्याध्याय के बीच की अवधि के आधार पर निर्धारित किया जाता है। यदि पूर्वाहन काल के दौरान पंचमी तिथि प्रबल होती है, तो वसंत पंचमी का उत्सव शुरू होता है।
बसंत पंचमी का धार्मिक महत्व
बसंत पंचमी को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं, तब सभी देवी-देवताओं ने मां सरस्वती की स्तुति की थी। इसी स्तुति से वेदों की ऋचाओं का निर्माण हुआ और उनसे वसंत राग का निर्माण हुआ। यही कारण है कि इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
वसंत ऋतु छः ऋतुओं में सबसे लोकप्रिय होती है और इस ऋतु में प्रकृति का सौन्दर्य मन मोह लेता है। इस ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ मास के पांचवें दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती है।
मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन भगवान कामदेव और देवी रति की पूजा करने से पति-पत्नी को सुखमय वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में बसंत पंचमी का वर्णन ऋषि पंचमी के नाम से मिलता है। इसके अलावा बसंत पंचमी को श्री पंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
बसंत पंचमी पर होगी पूजा
सनातन धर्म में बसंत पंचमी का बहुत महत्व है और इस दिन पीले रंग का प्रयोग शुभ माना जाता है। इस दिन देवी सरस्वती के साथ भगवान विष्णु, कामदेव और श्री पंचमी की पूजा की जाती है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा विशेष फलदायी होती है।
वसंत पंचमी पर देवी सरस्वती की पूजा इस प्रकार करें।
पूजा स्थल की सफाई के बाद गंगाजल का छिड़काव करें।
इसके बाद चौकी पर देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
अब सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें और फिर कलश की स्थापना करें।
मां सरस्वती को पीले वस्त्र अर्पित करें।
इसके बाद देवी को रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, , पीले या सफेद रंग के फूल और अक्षत अर्पित करें।
देवी सरस्वती का आशीर्वाद पाने के लिए सरस्वती स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
अब दोनों हाथ जोड़कर देवी सरस्वती का ध्यान करें और उनसे प्रार्थना करें।
अंत में देवी सरस्वती की आरती करें और उन्हें पीली मिठाई प्रसाद के रूप में अर्पित करें।
श्री पंचमी पूजा का महत्व
बसंत पंचमी के दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। इस दिन कई लोग देवी लक्ष्मी और मां सरस्वती की एक साथ पूजा करते हैं। आमतौर पर व्यापारी वर्ग के लोगों द्वारा देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, साथ ही इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा के साथ श्री सूक्त का पाठ करना फलदायी साबित होता है।
बसंत पंचमी से जुड़ी मान्यताएं
महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में, नवविवाहित जोड़ों को अपनी पहली बसंत पंचमी पर पीले कपड़े पहनकर पूजा करने के लिए मंदिरों में जाना अनिवार्य है।
राजस्थान में एक लोकप्रिय रिवाज के अनुसार, भक्त बसंत पंचमी के दिन चमेली की माला पहनते हैं।
यह त्योहार पंजाब में वसंत ऋतु की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। वहां सभी लोग पीली पगड़ी और पीले वस्त्र पहनकर पूरे उत्साह के साथ वसंत पंचमी मनाते हैं। इस दिन पंजाब में कई जगहों पर पतंगबाजी भी की जाती है।
बसंत पंचमी का त्योहार कहाँ मनाया जाता है?
बसंत पंचमी, जो वसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है, ज्ञान और शिक्षा की देवी सरस्वती को समर्पित है। यह त्योहार देश के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भागों में धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह हिंदू त्योहार नेपाल में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
बसंत पंचमी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे और उन्हें अपने संसार में कुछ कमी महसूस हुई। इसके बाद उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर पृथ्वी पर छिड़का, तब देवी श्वेत रंग, हाथों में पुस्तक, हाथों में माला और वीणा लिए वहां प्रकट हुईं। ब्रह्मा जी ने सबसे पहले उन्हें वाणी की देवी सरस्वती के नाम से पुकारा और सभी जीवित प्राणियों को भाषण देने को कहा। उसी दिन से देवी सरस्वती ने अपनी वीणा की मधुर ध्वनि से सभी प्राणियों को वाणी दी।